कहाँ खो गई बरगद पीपल की छाँव ? …….

कहाँ खो गई बरगद पीपल की छाँव?

हरियाली का पर्याय रहा सम्पूर्ण उत्तर भारत कभी अपनी जीवंत संस्कृति के लिए विश्व-विख्यात रहा है। बरगद, पीपल, आम, अमरुद, जामुन, नीम, शहतूत जैसे असंख्य पेड़ों की जन्मस्थली यहां की धरती सदैव वृन्दावन के कुंजों से प्रतिस्पध्र्दा को उत्सुक रही है। पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और ग्राम बाहुल्य से निर्मित हरियाणा के जन-जीवन का विकास ही बरगद की बांहों से हुआ है। यहां प्रत्येक गांव के बीच में एक विशाल बरगद का पेड़ होता था। सम्भवत: जब भी गांव बसाया जाता था तभी सबसे पहली परम्परा बरगद का पेड़ लगाने की  रही होगी। इसीलिए प्रत्येक गांव का बरगद का पेड़ गांव के सबसे बड़े बुजर्ग की तरह अपनी भुजाओं की छाया और संरक्षण पूरे गांव को हर समय प्रदान था। पंचायत हो तो बरगद के नीचे, तमाशे, नौटंकी या सांग, डेरू-डमरू, नट-बादी, गूगापीर का खेल हो तो बरगद के नीचे। गांव का कोई भी आयोजन बरगद के बिना अधूरा था। भीषण गर्मी की दुपहरी में तो पूरे गांव के लोग, बच्चे, पशु और पक्षी मानों इस बरगद की गोद में सिमट जाते थे और वह बरगद, एक मुर्गी जैसे अपने अण्डों को सेती है ठीक उसी तरह, पूरे गांव की प्राण रक्षा में व्यस्त दिखाई देता था। उस बरगद की छाया केवल छाया नहीं थी अपितु पिता के वात्सल्य जैसा अमृत उसमें लबालब भरा होता था। जो शीतलता, प्यार और अपनत्व उस बरगद की छाया में होता था वह आजकल के कूलर, पंखे और वातानुकूलित कक्ष में कहां?

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